प्रधानमंत्री, भारत में किसके द्वारा और कैसे चुने जाते हैं ?

जैसा कि हम लोग जानते ही हैं कि अपना भारत देश एक पार्लियामेंट्री फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट (संसदी प्रणाली) की तरह काम करता है जिसे काउंसिल आफ मिनिस्टर्स द्वारा कार्य किया जाता है।

पार्लियामेंट के तीन प्रमुख भाग मिलकर एक संयुक्त पार्लियामेंट का निर्माण करते हैं जिनमें पहला लेजिसलेच्योर और दूसरा एग्जीक्यूटिव और तीसरा राष्ट्रपति होते हैं।

राष्ट्रपति को पूरे पार्लियामेंट यानी संसद प्रणाली के प्रमुख के तौर पर देखा जाता है जो की आर्टिकल 53 में दिया गया है जबकि 74 में यह कहा गया है की ।

राष्ट्रपति जो की पार्लियामेंट के हेड यानी ससद प्रमुख के तौर पर स्थापित किए गए हैं उन्हें काउंसिल आफ मिनिस्टर्स के एडवाइस के तौर पर अपने कार्य को करना रहता है।

आर्टिकल 75(1) भारत का संविधान

प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है जो की आर्टिकल 75(1) में बताया गया है। पार्लियामेंट इलेक्शन यानी संसदीय लोकसभा चुनाव के बाद जो पार्टी बहुमत आंकड़े को पर करती है तथा सरकार बनाने का दावा पेश करती है तो उसके नेता को प्रधानमंत्री पद के लिए नियुक्त किया जाता है।

यह बहुमत आंकड़ा कुल सीटो का 51% होना चाहिए जो कि भारत में 543 टोटल सीट में से 272 सीट का बहुमत हासिल करना अनिवार्य है तथा सरकार बनाने के लिए बहुमत वाली पार्टी काबिल है।

कौंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स कौन होते हैं ?

भारत देश संसद प्रणाली वाला देश है जिसमें काउंसिल आफ मिनिस्टर्स का एक प्रमुख भूमिका निभाता है यानी कहे तो काउंसिल ऑफ मिनिस्टर ही पूरे देश चलते हैं।

कौंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स का मुख्य काम संसद से पारित कानून को लागू करवाना होता है और साथ ही साथ उसे निगरानी के साथ ही उसका नियंत्रण भी काउंसिल ऑफ मिनिस्टर द्वारा किया जाता है।

इन कौंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स में जैसे प्राइम मिनिस्टर, कैबिनेट मिनिस्टर, स्टेट मिनिस्टर्स शामिल रहते हैं और इन्हीं काउंसिल आफ मिनिस्टर्स में प्रधानमंत्री भी शामिल होते हैं।

The कौंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स के प्रमुख को प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाता है प्रधानमंत्री ,काउंसिल आफ मिनिस्टर्स में से ही अपने पद को स्थापित करते हैं।

भारत के प्रधानमंत्री पद की नियुक्ति

प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है आर्टिकल 75(1)। भारत देश इंग्लिश संसदीय प्रणाली को अपनाये हुए हैं । जिसमें राष्ट्रपति को यह कानूनी शक्ति स्थापित किया गया है ।

कि वह अपने विवेक बुद्धि के अनुसार जो पार्टी लोकसभा में बहुमत की स्थिति में है उसके नेता को प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित करती है।

हालांकि प्रधानमंत्री पद स्थापित करने के बाद यह सुनिश्चित करना होता है कि जो नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त किया गया है वह हाउस में अपना बहुमत साबित कर सके।

अगर कोई भी पार्टी बहुमत की स्थिति में नहीं है तब प्रधानमंत्री पद को राष्ट्रपति द्वारा अपनी कानूनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए जो पार्टी उन्हें लगता है कि बहुमत साबित कर लेगी उनके नेता को इस पद के लिए नियुक्त कर सकती है।

लेकिन उन्हें निर्धारित तय समय में हाउस में अपने मेजॉरिटी यानी बहुमत को साबित करना होगा जिसे कॉन्फिडेंस ऑफ़ हाउस भी कहते हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो चुने हुए नेता को अपने पद से इस्तीफा देना होता है।

यह नियम प्रणाली अंग्रेजी संसदीय प्रणाली से लिया गया है जिसमें बताया गया है कि अगर ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न होती है जहां कोई पार्टी बहुमत की स्थिति में नहीं है तब राष्ट्रपति को यह कानूनी अधिकार है कि वह शो पार्टी यह दावा करती है कि वह सरकार बना लेगी उसके नेता को प्रधानमंत्री पद के लिए नियुक्त कर दिया जाता है।

किन परिस्थितियों में राष्ट्रपति बिना बहुमत साबित किए हुए प्रधानमंत्री पद को चुनती है ?

चुनाव संपन्न होने के बाद अगर कोई पार्टी बहुमत की स्थिति में नहीं है तो प्रथम दृष्टि से नेता प्रतिपक्ष को सरकार बनाने के लिए न्योता भेजा जाता है।

इतिहास में इसके अनेकों उदाहरण देखे जा सकते हैं जब जनता दल की सरकार चरण सिंह जी द्वारा अपने पार्टी के संख्या बल को वापस ले लिया था तब मोरारजी देसाई जी की सरकार गिर गई थी, तब उसके बाद राष्ट्रपति द्वारा अपोजिशन यानी नेता प्रतिपक्ष के नेता को सरकार बनाने का नेवता भेजती है।

जिमें सबसे पहले राष्ट्रपति ने उसे समय के नेता प्रतिपक्ष YB Chavan जी को न्योता भेजा पर उन्होंने बताया कि वह सरकार बनाने में असमर्थ है क्योंकि उनके पास संख्या बल की कमी है।

तब राष्ट्रपति ने दूसरे नेता प्रतिपक्ष चरण सिंह जी और मोरज देसाई जो की संयुक्त पार्टी के नेता थे उनको सरकार बनाने का को नेवता भेजती है । और जनता पार्टी संयुक्त को उनके बहुमत की आंकड़े की रिपोर्ट को जमा करने को कहती है ।

जिसमें चरण सिंह जी के द्वारा जमा किया गया बहुमत आंकड़ा जो की मोरारजी देसाई जी के बहुमत आंकड़ों से ज्यादा था लेकिन चरण सिंह जी के आंकड़े सरकार बनाने में असफल तथा बहुमत के आंकड़ो के निकट भी नहीं था।

फिर भी राष्ट्रपति द्वारा चरण सिंह जी को सरकार बनाने को कहा गया और उन्हें तीन हफ्ते में अपनी बहुमत साबित करने को भी कहा गया।

दिनेश चंद्र वर्सेस चौधरी चरण सिंह 1980

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिनेश चंद्र वर्सेस चौधरी चरण सिंह 1980 की केस में यह बताया गया कि नियुक्ति से पहले राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए गए प्रधानमंत्री जो की बहुमत के आंकड़ों में नहीं थे फिर भी उन्हें संवैधानिक करार दिया गया ।

सिंगल लार्जेस्ट पार्टी को नेवात भेजती है, राष्ट्रपति

दूसरी दृष्टिकोण में अगर कोई पार्टी मेजोरिटी यानी बहुमत की स्थिति में नहीं है तो राष्ट्रपति लोकसभा में सिंगल लार्जेस्ट पार्टी को नेवात भेजती है।

अगर दो या दो से अधिक पार्टिया चुनाव से पहले ही संयुक्त लड़ती है और संख्या बल बहुमत की स्थिति में होती है तो राष्ट्रपति उनके संयुक्त नेता को सरकार बनाने का मैं नेवात भेजती है।

उदाहरण के तौर पर देखे तो इतिहास में ऐसे कई घटनाएं हैं जिन्हें इस विषय से जोड़ा जा सकता है बात 1977 की थी जब इमरजेंसी के समय बहुत सी पार्टियों एकजुट हुई और यूनाइटेड पार्टी का निर्माण किया जिसे जनता पार्टी के नाम से पार्लियामेंट इलेक्शन का चुनाव लड़ा।

जनता पार्टी ने बहुमत हासिल कर सरकार बनाई और जिसके नेता मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद की सपथ लेते हैं हालांकि बाद में चरण सिंह द्वारा अपना बहुमत जनता पार्टी से वापस ले लेते हैं ,जिससे मोरारजी देसाई बहुमत साबित करने में असफल हो जाते हैं और अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप देते हैं।

संयुक्त सरकार

  • अगर चुनाव संपन्न होने के बाद दो या दो से अधिक पार्टिया आपस में संयुक्त होती हैं और अपना बहुमत साबित करती है , तो उनके संयुक्त नेता को सरकार बनाने का नेवता दिया जाता है।
  • इन चारों परिस्थितियों में अगर कोई भी पार्टी या संयुक्त परिया बहुमत साबित करने में सफल नहीं होती है तो प्रधानमंत्री पद के लिए जो पार्टी आश्वासन अथवा साक्ष्य के साथ राष्ट्रपति को संतुष्ट कर लेती है।
  • तो राष्ट्रपति उनके चुने हुए नेता को प्रधानमंत्री पद के लिए नियुक्त कर देती है और उन्हें और सरकार बनाने को कहती है लेकिन उनको दिए हुए निर्धारित समय में पार्लियामेंट के हाउस में कॉन्फिडेंस मेजोरिटी को साबित करना होगा।

अगर कॉन्फिडेंस मेजॉरिटी साबित करने में सफल होती है तो इस पद से उन्हें इस्तीफा देना होगा।

क्या प्रधानमंत्री बनने के लिए लोकसभा का सदस्य होना अनिवार्य है ?

प्रधानमंत्री की नियुक्ति से पहले लोकसभा का सदस्य रहना अनिवार्य नहीं है लेकिन संसदीय प्रणाली कि किसी एक हाउस का मेंबर यानी सदस्य होना अनिवार्य है।

ऐसा कोई कानूनी रुकावट नहीं है की नियुक्ति से पहले प्रधानमंत्री पद के लिए अनिवार्य रूप से लोकसभा का सदस्य यानी संसद होना आवश्यक है लेकिन उन्हें नियुक्ति के 6 महीने के भीतर चुनकर लोकसभा का सदस्य बनना अनिवार्य होता है।

अगर वह सुनिश्चित 6 महीने के अंदर संसद के रूप में चुनकर नहीं आते तो उन्हें इस पद से इस्तीफा देना होगा। डॉ मनमोहन सिंह जोकि राज्यसभा सांसद थे उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया बाद में वह लोकसभा सांसद बने और इस पद को बरकार रखा।

एसपी आनंद वर्सेस एचडी देवी घोड़ा 1997

एसपी आनंद वर्सेस एचडी देवी घोड़ा 1997 सुप्रीम कोर्ट 272 इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह बताया है कि प्रधानमंत्री पद के लिए किसी भी संसदीय प्रणाली का सदस्य होना अनिवार्य नहीं है और इस पद के लिए 6 महीने तक नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जा सकती है जो की संविधान के आर्टिकल 75( 5) में बताया गया है।

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